कुछ देर तक दोनों चुपचाप चलते रहे। उस मौन को भंग करते हुए अखिल ने कहा - ‘‘मुझे नहीं पता था कि तुम अभी तक स्कूल स्टूडेंट हो।’’ ‘‘अच्छा, तो तुम मुझे अभी तक दादी-अम्मा समझ रहे थे?’’ बचकाने अन्दाज में जसजोत ने अपने दोनों हाथ कमर पर रखे और जोर से पैर पटका। पैर पटकते ही बगल में लगी हुई क्यारी की ईंट उखड़ गई। जसजोत का सन्तुलन बिगड़ गया और ठक्क से उसका पैर पानी में गया। ‘‘जा कमली...’’ अखिल ने मुस्कराते हुए गर्दन झटककर कहा। जसजोत की गुलाबी गुरगाबी में पानी भर गया था। बोली कुछ नहीं। ‘चप-चप’ पानी भरी गुरगाबी में भी वह चुपचाप चलती रही। ‘‘क्या हुआ? कुछ बोलती क्यों नहीं? पहले पानी निकाल लो बैली से...’’ अखिल ने व्यथित स्वर में कहा। ‘‘कमली कहा तुमने मुझे! क्या मैं तुम्हें कमली नजर आती हूँ?’’ जसजोत ने दृढ़तापूर्वक पूछा। ‘‘अच्छा, तो इस बात पर खफा हो? क्या अर्थ होता है कमली का?’’ ‘‘पागल होता है। क्यों, क्या मैं समझती नहीं?’’ जसजोत तुनकी। ‘‘समझती तो तुम हो इसीलिए तो मैंने तुम्हें कमली कहा। कमली का अर्थ होता है ब्रह्म, ब्रह्मांड। ईश्वर का स्त्री रूप, नारी रूप, सुना होगा तुमने फिर - ‘मैं तेरी कमली हाँ’। दीवानगी जिस पर छा जाए वो भी कमली और इस सारी खुदाई की मालकिन भी कमली। हर तरफ कमली। हा-हा-हा! जा कमली! तू तो निरी कमली है - ओ-हो-हो- हो!’’ अखिल को खिलखिलाकर हँसते हुए देखा तो कमली...नहीं, जसजोत भी उसके साथ मिलकर हँसने लगी। गुरगाबी पहनकर खड़ी हुई, साथ में अखिल भी उठ गया। वह अभी भी हँस रहा था - ‘कमली!’ भीतर-ही- भीतर कुछ सोचता और हँसने लगता। जसजोत आश्चर्यचकित थी कि इतना चलताऊ नाम उसे मिला लेकिन इतनी विशाल और विराट गरिमा के साथ - ‘कमली’! - इसी पुस्तक से
Books Information | |
Author Name | Dr. Sunita Sharma |
Condition of Book | Used |
- Stock: In Stock
- Model: SGBe119