हरनाथ : जिन दिनों प्रकृति पर विजय पा जाने की धारा हमारे प्राचीन समाज का मुख्य उद्देश्य रही उन दिनों उज्जैन का ज्योतिष और काव्य, तक्षशिला का आयुर्वेद और शल्य-शास्त्र, मथुरा का वास्तु और स्थापत्य, दक्षिण का संगीत और नृत्य, काशी का दर्शन आदि संसार भर में प्रसिद्ध हो - गए-जनता ने बहुत कुछ पाया; परंतु जब धारा केवल मन पर विजय पाने के लिए बह पड़ी तब योग्य और सशक्त लोग त्याग- तपस्या के मोह में घर छोड़कर कंदराओं में जाने लगे, जनता को निरीह बन जाने के लिए और प्रकृति के दिए कष्टों और दुःखों से भाग पड़ने के लिए उपदेश देने लगे । उधर रावों, राजाओं और सम्राटों की बन पड़ी । अधिकांश जनता को अचेत-सा करके त्यागी और राजा-दोनों ईश्वर के अवतार बन बैठे । जगह-जगह छुटभैयों ने अपने- अपने राज्य बनाए जरा-जरा सी बात पर परस्पर लड़े और जब वे लोग देश पर चढ़ दौड़े, जिन्होंने प्रकृति पर विजय पाने के? अधिक अभ्यास किए थे!, तब सिटपिटा गए और लड़ते-मरते-सिसकते दब गए ।
काशीनाथ : आप बाहर के पौधों को उखाड़-उखाड़कर यहाँ की भूमि में लगाने के घोर पक्षपाती हैं । परंतु याद रखिए कि वे ' बाहर के पौधे यहाँ कभी नहीं पनप सकेंगे ।, यहाँ की प्राचीन त्याग-प्रधान संस्कृति फिर उठेगी औरन केवल इस देश को बचाएगी, बल्कि संसार भर के मानव समाज की रक्षा में हाथ बँटाएगी । इसी पुस्तक से,
प्रस्तुत नाटक में एक ओर आधुनिक एवं प्राचीन संस्कृति का टकराव दृष्टिगत होता है तो दूसरी ओर व्यापक एवं सार्थक चिंतन - भी पढ़ने को मिलता है । निश्चय ही प्रस्तुत : पुस्तक को पढ़कर पाठक भारत की - अर्वाचीन व प्राचीन संस्कृति को लेकर अपना दृष्टिकोण व्यापक कर सकेंगे ।
Books Information | |
Author Name | Vrindavan Lal Verma |
Condition of Book | Used |
- Stock: Out Of Stock
- Model: SGCf18
- ISBN: 8173154368