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Samar by Mehrunnisa Parvez

Samar by Mehrunnisa Parvez
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Samar by Mehrunnisa Parvez

निरंतर हम उसका सामना करते हैं, जूझते हैं, हारते हैं, जीतते हैं; फिर रोते हैं, थकते हैं और फिर मुसकराने लगते हैं ।

' नेहा, समर कभी सपने में दिखता है?'' '' हां आंटी । '' नेहा बोली और सिर नीचा कर लिया । उसकी औखों से औसू टपक पड़े-' ' वह तो रोज सपने में दिखता है । मैंने आज ही सपने में देखा कि हमारी शादी हो रही है । उसने क्रीम रंग का सूट पहना है और मैं दुलहन के लाल जोड़े में हूँ । आटी, सब कहते हैं, सवेरे का सपना सच होता है; है न? मगर वह तो अब नहीं है, सपना कैसे सच होगा?'' मैं सन्न! अवाक् सी उसकी दुखती आँखों को देखती रही । उसके प्रश्‍न का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था । उसके सपने की मेरे पास कोई ताबीर भी तो नहीं थी । उसकी औंखों से टप-टप टपकते आँसू मेरे हाथों पर टपक रहे थे । मैंने अपने हाथ उठाकर उसकी काँपती पीठ पर रख दिए । जानती थी, दिलासा देने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे । उसके लंबे बाल पीठ पर फैले थे । दोनों की जोड़ी कितनी प्यारी होती, मैंने मन में सोचा । मैं उसे दुलहन बना देख रही थी । -इसी पुस्तक से

समर! हमारे जीवन का समर । दरअसल जीवन का दूसरा नाम ही समर है । जीवन के हर क्षण में, हर पड़ाव पर समर हमारे सामने होता है । निरंतर हम उसका सामना करते हैं, जूझते हैं, हारते हैं, जीतते हैं; फिर रोते हैं, थकते हैं और फिर मुसकराने लगते हैं । छोटे- छोटे दुःखों में रो लेना और फिर बड़े दुःख में बस मुसकरा उठना, शायद इसीका नाम? जीवन है । सारी जिंदगी हम छोटे-छोटे दुःखों के सहारे अभ्यास करते हैं, क्योंकि तकदीर को पता होता है कि इसे एक बड़े समर से हारना है । समर खुद कभी नहीं मरता, वह हमें शक्‍त‌ि देता है । समर को कभी मरने नहीं देना चाहिए । उसकी मृत्यु नहीं होनी चाहिए । जीवन से यदि समर चला गया तो शेष क्या रहेगा?

Books Information
Author NameMehrunnisa Parvez
Condition of BookUsed

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Rs.82.00
Rs.150.00
Ex Tax: Rs.82.00
  • Stock: Out Of Stock
  • Model: SGCf33
  • ISBN: 9788185826721
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