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Kitne Aprasangik hai Dharm Granth (Hindu Religion) by Rakesh Nath

Kitne Aprasangik hai Dharm Granth (Hindu Religion) by  Rakesh Nath
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Kitne Aprasangik hai Dharm Granth (Hindu Religion) by Rakesh Nath

धर्माचार्य अपने कथन, उपदेश और कार्यों की पुष्टि के लिए कदमकदम पर धर्मग्रंथों की दुहाई देते रहते हैं, जिस से लगता है कि हमारे जीवन में धर्मग्रंथों की जाने कितनी सार्थकता या उपयोगिता है. किन्तु सदियों पूर्व रचित कथित धर्मग्रंथों की ऊलजलूल बातों का आज की बदली हुई परिस्थितियों में क्या औचित्य है? क्या आज के वैज्ञानिक युग में भी हम किसी बात पर खुले दिमाग से विचार नहीं कर सकते? प्रश्न यह भी है कि इन धर्मग्रंथों इन धर्मग्रंथों ने हमें आज तक क्या दिया है? क्या धर्मग्रंथों के उपदेशों या आदर्शों के अनुकरण पर हमारा जीवनयापन सहज होगा? क्या धर्मग्रंथों के बिना हमारा काम नहीं चल सकता? ऐसे ही तमाम प्रश्नों के संदर्भ में तर्क एवं तथ्यपूर्ण विचारों का संकलन है प्रस्तुत पुस्तक 'कितने अप्रासंगिक है धर्मग्रंथ'.

Books Information
Author NameRakesh Nath
Condition of BookUsed

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Ex Tax: Rs.28.00
  • Stock: Out Of Stock
  • Model: sg219
Tags: novels
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