सुपरिचित कथाकार चित्रा मुद्गल का बृहद उपन्यास 'आवाँ' स्त्री–विमर्श का बृहद आख्यान है, जिसका देश–काल तो उनके पहले उपन्यास 'एक जमीन अपनी' की तरह साठ के बाद का मुंबई ही है, लेकिन इसके सरोकार उससे कहीं ज्यादा बड़े हैं, संपूर्ण–स्त्री विमर्श से भी ज्यादा श्रमिकों के जीवन और श्रमिक राजनीति के ढेर सारे उजले–काले कारनामों तक फैले हुएऌ जिसकी जमीन भी मुंबई से लेकर हैदराबाद तक फैल गई है। उसमें दलित जीवन और दलित–विमर्श के भी कई कथानक अनायास ही आ गए हैं। इस रूप में इसे आज के स्त्री–विमर्श के साथ–साथ दलित–विमर्श का महाकाव्य भी कह सकते हैं, जिसे लिखने की प्रेरणा चित्रा मुद्गल को मुंबई में जिए गए अपने युवा जीवन से मिली। 'आवाँ' का बीज चाहे मुंबई ने रोपा, लेकिन खाद–पानी उसे हैदराबाद से मिला और श्रमिकों के शहर कोलकाता में बैठकर वह लिखा गया तो दिल्ली ने आधार कैंप का काम किया। इस रूप में यह लगभग पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला हिन्दी उपन्यास है, बड़े, बहुत बड़े फलक का उपन्यास। सही अर्थों में एक बड़ा उपन्यास, जिसमें लेखिका की अकूत अनुभव–संपदा काम आई है। | |
नमिता पाँडे तो खैर चित्रा मुद्गल का प्रतिरूप नहीं है, लेकिन नमिता पाँडे की प्रतिरूप हर्षा जरूर सुरेंद्र वर्मा के उपन्यास 'मुझे चाँद चाहिए' की नायिका वर्षा वशिष्ठ की याद दिलाती है और संयोग देखिए कि दोनों नायिकाएँ ब्राह्मण हैं, लेकिन 'पीली छतरी वाली' नहीं हैं, गोकि 'पीली छतरी वाली लड़की' जैसा हाल नमिता पाँडे का करने के लिए 'आवाँ' में पवार मौजूद भी था, चित्रा चाहतीं तो वैसा या उससे भी ज्यादा रतिरंग 'आवाँ' में बिखेर सकती थीं, संजय कनोई से बिखरवाया भी है पर अंततः वे नमिता पाँडे को उस पंक से निकाल ले गई हैं। |
Books Information | |
Author Name | Chitra Mudgal |
Condition of Book | Used |
- Stock: Out Of Stock
- Model: sg239