Novel of Sanjay Choubey covering the communally sensitive period of India from 1986 to 1989. साम्प्रदायिक रुढियों के खिलाफ एक विचारोत्तेजक रचना. 9 नवंबर 1989 को बर्लिन की दीवार गिरी थी. 9 नवंबर 1989 को सनातन भारत में राम जन्म भूमि पर शिलान्यास हुआ था. ...लेकिन इससे पौने तीन साल पहले 18 फरवरी 1987 को उसने पटना के गाँधी मैदान में कहा - "समस्या ? ऐसा करने पर सब कुछ तहस नहस हो जाएगा. है न ! समस्याओं की झड़ी लग जायेगी.. समाज बिखर जाएगा.... आपको यही लग रहा होगा... मुझे भी ऐसा ही लग रहा है लेकिन ये... ये अन्तर्धार्मिक या अन्तर्जातीय विवाह, ये हिन्दू - मुस्लिम के बीच विवाह या ब्राहमण - हरिजन के बीच का विवाह - समस्या नहीं, समाधान है. सदियों पुरानी समस्या - आपसी फसाद व नफरत के जहर का समाधान ! सोचना जरा ! सब कुछ तहस नहस हो जाएगा लेकिन एक नया समाज बनेगा, एक नया परिवार बनेगा और इस नये परिवार में 'नया आदमी' जन्मेगा..." संजय चौबे द्वारा लिखित उपन्यास 9 नवंबर प्रकाशन के साथ ही चर्चा में आ गया. प्रकाशन के तीन महीने के अंदर इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित हुआ. अभी तक इसके और भी संस्करण आ चुके है. प्रख्यात साहित्यकार ज्ञानेन्द्रपति के मुताबिक़ - यह एक नई किताब है. वे आगे कहते हैं - हर अगली रचना नई नहीं होती. आवश्यक है कि नई रचना भीतर से भी नवीनता लिए हुए हो, पाठक का मन एक नए ढंग से आंदोलित हो – उसको ग्रहण करने की उत्सुकता उसके भीतर हो, तब कोई रचना नयी होती है.” इस उपन्यास का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है और शीघ्र ही इसका अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी प्रकशित होने वाला है. 2017 में संजय चौबे का महिलाओं से जुड़े मसलों पर प्रकाशित लेख संग्रह - वह नारी है को भी पाठकों ने हाथों-हाथ लिया है. इससे पूर्व संजय चौबे की कविताओं का संग्रह - अवसान निकट है भी प्रकाशित हो चुका है.
Books Information | |
Author Name | Sanjay Choubey |
Condition of Book | Used |
- Stock: Out Of Stock
- Model: Sg806