Out Of Stock
Sukoon (Hindi, Paperback, Vikrant Shukla)
लेखक – विक्रांत शुक्ला
“बेस्ट फिक्शन बुक्स” पहली बार किसी हिंदी पुस्तक की समीक्षा प्रकाशित कर रहा है. जैसे ही इस पुस्तक के प्रकाशक के जरिये यह पुस्तक प्राप्त हुई, हमारे साथ जुड़े हुए समीक्षकों में इस पुस्तक को पढने की जैसे होड़ सी लग गई. सभी विक्रांत शुक्ला की पहली हिंदी पुस्तक पढने के लिए बेहद उत्साहित थे. इस पुस्तक की समीक्षा करने की जिम्मेदारी “हुसैन मालिक” ने उठाई है.
समीक्षा –
पुस्तक का कवर पृष्ठ बेहद आकर्षक और ध्यान खींचने वाला है. पुस्तक को हाथ में लेते ही एक अजीब सा एहसास होता है. पुस्तक का छापा उत्तम दर्जे का है और साफ ज़ाहिर होता है की प्रकाशक ने पूरे दिल से इस पुस्तक के प्रकाशन पर काम किया है.
इस पुस्तक को देख कर ही दहशत का एहसास होता है और जैसे जैसे एक के बाद एक पन्ने पढ़ते जाते हैं, यह साफ़ होता जाता है की यह पुस्तक कमज़ोर दिलवालों के लिए नहीं है. बड़ी ही सफाई से एक-एक पात्र का आगमन होता है और वो कहानी का अभिन्न हिस्सा बनता जाता है. किसी भी लेखक के लिए यह बहुत ज़रूरी है की वो अपने पाठक से आगे का सोचे और विक्रांत शुक्ला ने अपने अंग्रेजी उपन्यासों से पहले ही वो पहचान बना ली है की जब तक पाठक उनकी पुस्तक का आखिरी पन्ना नहीं पढ़ ले, उसके मन में यही चलता रहता की आगे क्या होने वाला है. यही विक्रांत शुक्ला ने इस पुस्तक में किया है, जब भी लगता है की कड़ी हाथ आ गई है, उसी पल कुछ ऐसा होता है की पाठक चकरा सा जाता है, और उलझता चला जाता है. लेखक अपनी इस कला के लिए बधाई के पात्र हैं. कुछ लेखकों को ऊपरवाले का आशीर्वाद मिला होता है और विक्रांत शुक्ला उन्ही लेखकों में से एक हैं जो आखिरी पन्ने तक अपने पाठकों को बांधे रख सकते हैं.
कहानी में डर है, दहशत है, कुछ ऐसा माहौल बनाया गया है की अगर पाठक किसी अकेले घर में या किसी सूनसान जगह पर इस पुस्तक को पढ़ेगा तो हर आहट पर उसका चौंकना लाजिमी है. कहानी के पात्र कब सच्चाई बन कर दिलों-दिमाग पर छाने लगते हैं, इस बात का एहसास तक नहीं होता और किसी बुरे सपने को तरह इसके पात्र सपनों में दिखने भी लगते हैं.
कहानी घूमती है दो मित्रों के चारों तरफ, एक मित्र लाचार है और बस आत्महत्या करने ही वाला है की उसके मित्र को उसकी ज़रुरत पड़ती है. देव् नाम का पात्र अपने मित्र महेश को मदद के लिए बुलाता है क्यूंकि उसके घर में अजीबों-गरीब घटनाएं हो रहीं हैं. बस उसी के साथ शुरू होता है डर और दहशत का वो सफ़र जो पाठकों का सुकून हराम करने के लिए काफी है. हॉरर और सस्पेंस इस पुस्तक के हर पन्ने में समाया हुआ है. जल्दी ही अगर इस कहानी पर कोई फिल्म भी बन जाए तो मुझे बिलकुल भी आश्चर्य नहीं होगा.
पुस्तक में कहीं भी अश्लील भाषा का प्रयोग नहीं किया गया है. बड़ी ही साफ़-सुधरी भाषा में सब कुछ लिखा गया है. भाषा सरल और रोचक है और पुस्तक पढ़ते ही एहसास होने लगता है की शब्द किसी शब्दों के जादूगर की कलम से निकल रहे हैं.
पाठकों को सलाह दी जाती है की इस पुस्तक को रात में या अकेले में न पढ़ें. हॉरर के शौक़ीन लोगों के लिए यह पुस्तक एक तोहफे की तरह है.
इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद पढना खासा रोमांचक अनुभव होगा.
हॉरर के शौक़ीन इस पुस्तक को ज़रूर पढ़ें.
Books Information | |
Author Name | Vikrant Shukla |
Condition of Book | Used |
Rs.80.00
Ex Tax: Rs.80.00
- Stock: Out Of Stock
- Model: sg961